पीएम मोदी को क्यों सौंपा जा रहा है राजदंड? आजादी से 15 मिनट पहले नेहरू को मिला था सेंगोल (राजदंड)
दिल्ली - गृहमंत्री अमित शाह ने बताया है कि नई संसद के उद्घाटन के मौके पर तमिलनाडु से आए विद्वान पीएम नरेंद्र मोदी को सेंगोल देंगे। ये एक तरह का राजदंड है जो सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक स्वरूप दिया जाता है। 15 अगस्त 1947 की आधी रात को सेंगोल यानी राजदंड, पंडित नेहरू को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक स्वरूप सौंपा गया था।
इतिहास के अनुसार भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित नेहरू को पीएम बनने से कुछ दिन पहले पूछा कि आप देश की आजादी को किसी खास तरह से सेलिब्रेट करना चाहते हैं तो बताएं। पंडित नेहरू भारत के जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी सी. राजगोपालाचारी के पास गए। राजगोपालाचारी मद्रास के सीएम रह चुके थे, उन्हें परंपराओं की पहचान थी। उन्होंने नेहरू को राजदंड भेंट करने वाली तमिल परम्परा के बारे में बताया। जिसमें राज्य का राजगुरु नए राजा को सत्ता ग्रहण करने पर एक राजदंड भेंट करता है। परंपरा के अनुसार यह राजगुरु, थिरुवदुथुरै अधीनम मठ का होता है।
राजगोपालाचारी ने सुझाव दिया कि आपके पीएम बनने के बाद माउंटबेटन आपको यह राजदंड स्वतंत्रता और सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में दे सकते हैं। नेहरू राजी हो गए और लगे हाथ राजगोपालाचारी को इसकी व्यवस्था करने की जिम्मेदारी भी दे दी। राजगोपालाचारी ने थिरुवदुथुरै अधीनम मठ से संपर्क किया। वहां मालूम हुआ कि उनके 20वें राजगुरु श्री ला श्री अम्बालावन देसिका स्वामीगल बीमार हैं। दिल्ली से सुदूर उन्हें जब यह पता चला तो उन्होंने जिम्मेदारी स्वीकार की और उस वक्त मद्रास क्षेत्र के एक जौहरी को सोने का राजदंड बनाने को कहा। साथ ही यह भी कहा गया कि इस बार राजदंड के ऊपर नंदी की आकृति भी उभारी जाएगी। तबीयत खराब होने के बावजूद सारी व्यवस्था कराने के बाद राजगुरु ने अपने प्रतिनिधि श्री ला श्री कुमारस्वामी थम्बिरन को दिल्ली भेजने के लिए तैयार किया। वो उस वक्त मठ में मणिकम ओधुवार (पुजारी) के पद पर थे। दो अन्य प्रतिनिधियों के साथ राजदंड को दिल्ली लाने के लिए जवाहरलाल नेहरू ने एक विशेष विमान की व्यवस्था की थी।
14 अगस्त 1947 को रात के 11.45 बजे यानी आजादी मिलने से 15 मिनट पहले मठ के पुजारी ने राजदंड माउंटबेटन को दिया। इसके बाद उस पर पवित्र जल छिड़का गया। पुजारी ने वहां शैव समाज के संदत थिरुगनाना सांबंथऱ द्वारा लिखे भजन गाए और फिर उसे नेहरू को भेंट किया गया।
इसके बाद नेहरू के माथे पर राख लगाकर माला पहनाई गई और पुजारी ने भजन का आखिरी छंद गाकर पूरा किया। आखिरी पंक्तियां थी, ‘अदियार्गल वैनिल अरसलवार अनाई नमथे' यानी हम आज्ञा देते हैं कि उनकी विनम्रता स्वर्ग पर शासन करेगी। इस सेरेमनी के बाद ये राजदंड इलाहाबाद (प्रयागराज) संग्रहालय में रख दिया गया। इस दुर्लभ कला संग्रह के तौर पर रखी गोल्डन स्टिक को अब तक नेहरू की सोने की छड़ी के रूप में जाना जाता रहा है। हाल ही में चेन्नई की एक गोल्डन कोटिंग कंपनी ने इलाहाबाद संग्रहालय प्रशासन को इस स्टिक के बारे में बताया कि ये सत्ता हस्तांतरण का राजदंड है।
अमित शाह ने बुधवार को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि जब इस सेंगोल की जानकारी पीएम मोदी को मिली तो उन्होंने इसकी गहन जांच के आदेश दिए। इसके बाद तय किया गया कि इसे नई संसद में स्पीकर की कुर्सी के पास रखा जाएगा। नई संसद के उद्घाटन के मौके पर इसे पूरे विधि-विधान से पीएम मोदी को सौंपा जाएगा। 96 साल के तमिल विद्वान जो 1947 में उपस्थित थे वो 28 मई को भी उपस्थित रहेंगे।