जयपुर। अपराधियों के घरों पर चलाए जाने वाले बुल्डोजर कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है। इस पर कांग्रेस ने खुशी जाहिर करते हुए कोर्ट की टिप्पणी को स्वागत योग्य बताया है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने देश में प्रचलित हो रहे बुल्डोजर कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी का स्वागत करते हुए इसे न्यायिक प्रक्रिया के हित में बताया है। उन्होंने कहा कि बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए आरोपी के घर पर बुलडोजर चला देना किसी भी सभ्य और कानून का पालन करने वाले समाज में न्याय की कसौटी पर खरा नहीं उतरता।
गहलोत ने कहा कि उन्होंने दो वर्ष पहले भी इसी मुद्दे पर अपनी राय रखी थी, जो अब सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से मेल खाती है। अशोक गहलोत ने अपने बयान में कहा कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पूरी तरह स्वागत योग्य है। बिना कानूनी सुनवाई और उचित प्रक्रिया के किसी के घर पर बुलडोजर चला देना न्याय नहीं है। मैंने भी पहले इस मुद्दे पर सार्वजनिक मंचों पर कमोबेश इसी तरह के विचार रखे थे। त्वरित न्याय का सिद्धांत न केवल अनुचित है बल्कि यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। पूर्व मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि त्वरित न्याय के इस प्रकार के कदम एक सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत का संविधान हर व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रिया के तहत अपनी बात रखने का अधिकार देता है। ऐसे में बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए घरों को ध्वस्त करना पूरी तरह से संविधान के सिद्धांतों के विपरीत है। उन्होंने आगे कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक समाज में न्यायपालिका की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है और केवल न्यायालय के माध्यम से ही सज़ा दी जानी चाहिए, न कि प्रशासनिक या राजनीतिक दबाव में किसी त्वरित कार्रवाई के रूप में।
गहलोत के बयान के साथ ही देश के कई अन्य राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने भी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का स्वागत किया है। हाल के वर्षों में बुलडोजर से घर और संपत्तियों को ध्वस्त करने की घटनाओं पर देशभर में आलोचना की जा रही थी, और अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए राज्य सरकारों को कानूनी प्रक्रिया का पालन करने की चेतावनी दी है। अशोक गहलोत ने अंत में कहा कि यह समय है जब सरकारें और प्रशासन कानून के शासन का पालन करें और संविधान के मूल्यों की रक्षा करें। अशोक गहलोत ने याद दिलाया कि दो वर्ष पहले उन्होंने इसी मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त किए थे। उन्होंने तब भी कहा था कि बिना सुनवाई के किसी की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना या उसे ध्वस्त कर देना न्याय नहीं है। यह संविधान की आत्मा और कानून के शासन के खिलाफ है। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर टिप्पणी की है, यह स्पष्ट हो गया है कि त्वरित न्याय का सिद्धांत कानून के शासन के अनुरूप नहीं है।