भोपाल। मप्र में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश कांग्रेस संगठन में जल्द ही बड़े बदलाव हो सकते हैं। इसके लिए प्रदेश अध्यक्ष ने लगभग पूरी तैयारी कर ली है। नाथ का सबसे अधिक फोकस ग्वालियर-चंबल अंचल पर है। मध्यप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश कांग्रेस संगठन में जल्द ही बड़े बदलाव हो सकते हैं। सबसे बड़ा फेरबदल ग्वालियर चंबल संभाग में देखने को मिल सकता है। इसकी वजह यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के भाजपा में जाने से कांग्रेस इस क्षेत्र में कमजोर हो गई है। इसलिए कमलनाथ की कोशिश है की संगठन को मजबूत कर भाजपा को बड़ी चुनौती दी जाए।
मप्र में चुनाव में भले ही एक साल बचे हो लेकिन सियासी ठंड में भी दोनों दल लगातार अपने संगठनों को मजबूत करने में जुटे हुए है। भाजपा जहां कई जिलाध्यक्षों को बदल चुकी है तो अब कांग्रेस भी सिंधिया को घेरने के साथ संगठन को मजबूत करने कई जिलाध्यक्षों को बदलने की तैयारी कर रही है। लेकिन संगठन को मजबूत करना कांग्रेस के लिए इतना आसान नहीं होगा । सूत्रों के मुताबिकसबसे बड़ा फेरबदल ग्वालियर चंबल संभाग में देखने को मिल सकता है। कहां जा रहा  है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में इसको लेकर मंथन भी हो चुका है। मध्य प्रदेश में 2023 के चुनाव को लेकर ग्वालियर चंबल अंचल पार्टी के सामने क्षेत्र में संगठन को मजबूत करने की चुनौती है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने वाले 22 विधायकों में से ज्यादातर इसी अंचल से है। लिहाजा इन क्षेत्रों में कांग्रेस को चुनावी नजरिए से मजबूत करने के लिए फेरबदल किए जाएंगे।
16 जिलों के अध्यक्षों को बदलने पर  चर्चा
ग्वालियर शिवपुरी भिंड निवाड़ी मुरैना अशोकनगर श्योपुर समेत करीब 16 जिलों के अध्यक्षों को बदलने की तैयारी हो रही है। देखा जाएं तो कई जिलों में कांग्रेस की हालत खराब है। सबसे ज्यादा विध्य और बुन्देलखंड में कांग्रेस कमजोर है। प्रदेश के 13 जिले ऐसे हैं जहां कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। इनमें टीकमगढ़ निवाड़ी रीवा सिंगरौली शहडोल उमरिया हरदा नर्मदापुरम सीहोर खंडवा बुरहानपुर नीमच और मंदसौर जिलों में किसी भी सीट पर कांग्रेस का एक भी एमएलए नहीं हैं। इन जिलों में 42 विधानसभा की सीटें हैं। इन जिलों को लेकर भी कांग्रेस खासा जोर दे रही है। वहीं चंबल पर कांग्रेस का इसलिए भी जोर ज्यादा है क्योंकि 2018 में कांग्रेस ने सिंधिया को आगे करके चुनाव लड़ा था। चंबल अंचल के एक सीनियर कांग्रेस लीडर ने बताया कि अगले साल चुनाव होने हैं। पार्टी के सामने क्षेत्र में संगठन को मजबूत करने की चुनौती है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने वाले 22 विधायकों में से ज्यादातर इसी अंचल से है। लिहाजा इन क्षेत्रों में कांग्रेस को चुनावी नजरिए से मजबूत करने के लिए फेरबदल किए जाएंगे। ग्वालियर शिवपुरी भिंड निवाड़ी मुरैना अशोकनगर श्योपुर समेत करीब 16 जिलों के अध्यक्षों को बदलने पर चर्चा हुई है। सूत्रों की मानें तो जिलाध्यक्षों की नई लिस्ट पर भी अगले हफ्ते तक जारी हो सकती है।
इसलिए खास है ग्वालियर-चंबल
देखा जाएं तो मध्य प्रदेश के कई जिलों में कांग्रेस की हालत खराब है। सबसे ज्यादा विंध्य और बुन्देलखंड में कांग्रेस कमजोर है। प्रदेश के 13 जिले ऐसे हैं जहां कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। इनमें टीकमगढ़ निवाड़ी रीवा सिंगरौली शहडोल उमरिया हरदा नर्मदापुरम सीहोर खंडवा बुरहानपुर नीमच और मंदसौर जिलों में किसी भी सीट पर कांग्रेस का एक भी एमएलए नहीं हैं। इन जिलों में 42 विधानसभा की सीटें हैं। इन जिलों को लेकर भी कांग्रेस खासा जोर दे रही है। वहीं चंबल पर कांग्रेस का इसलिए भी जोर ज्यादा है क्योंकि 2018 में कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगे करके चुनाव लड़ा था। अब वहां कोई बड़ा चेहरा नहीं है। साथ ही जो जिलाध्यक्ष भी है वो सिंधिया के समय नियुक्त किए गए है। ऐसे में सर्जरी किया जाना बहुत जरूरी है। माना जा रहा है अगले हफ्ते तक संगठन में बदलाव देखने को भी मिल जाए।
कांग्रेस का फोकस गांवों की सरकार पर
उधर विधानसभा चुनाव से पहले पांच जनवरी को 61 हजार पंच सरपंच का चुनाव कराया जाना है। कांग्रेस का ध्यान गांवों की सरकार पर है। हालांकि यह चुनाव गैर दलीय आधार पर होगा फिर भी कांग्रेस चाहती है कि अधिक से अधिक गांवों में कांग्रेस समर्थित पंच सरपंच चुने जाएं जिससे विधानसभा चुनाव में उसे लाभ मिल सके। पार्टी ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी ने जिला प्रभारियों को स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य बनाने का जिम्मा सौंपा है। इस चुनाव के माध्यम से पार्टी मतदान केंद्र स्तर पर कार्यकताओं को भी सक्रिय कर रही है। ताकि विधानसभा चुनाव के लिए अभी से बूथवार टीम तैयार हो जाए। कांग्रेस पंचायत चुनाव को विधानसभा चुनाव के दृष्टिगत अवसर के रूप में ले रही है। संगठन प्रभारी चंद्रप्रभाष शेखर का कहना है कि चुनाव भले ही स्थानीय स्तर के हों पर इसके माध्यम से कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया जाएगा।