ह्यूस्टन । जब कभी बाद आते हैं गरजते-बरसते ैहं तो बिजली भी कौंधती है। बारिश के दिनों अक्सर बिजली कड़कते देखी-सुनी जाती हैं। आपने बिजली की चमक को सफेद, पीला या फिर कभी-कभी हल्के नीले रंग में देखा होगा। लेकिन कभी लाल रंग की कड़कती बिजली देखी है क्या? हाल ही में आसमान में लाल रंग की बिजली कड़कते वैज्ञानिकों ने देखा। ये बिजली वायुमंडल के ऊपर कड़क रही थी। लाल रंग की कड़कती बिजली को स्प्राइट कहा जाता है। यह बेहद संवेदनशील और तीव्र थंडरस्टॉर्म की वजह से होता है।
जहां सामान्य आकाशीय बिजली बादलों से धरती की तरफ गिरती है। स्प्राइट अंतरिक्ष की ओर भागते हैं। ये वायुमंडल के ऊपरी हिस्से तक चले जाते हैं। इनकी ताकत और तीव्रता बहुत ज्यादा होती है। लेकिन ये बेहद दुर्लभ होते हैं। लाल रंग की कड़कती बिजली यानी स्प्राइट कुछ मिलिसेकेंड्स के लिए ही दिखती है। इसलिए इन्हें देखना और इनकी स्टडी करना बेहद मुश्किल होता है। इसके व्यवहार की वजह से इसका नाम स्प्राइट रखा गया है। यह स्ट्रैटोस्फेयर से निकलने वाले ऊर्जा कण हैं जो तीव्र थंडरस्टॉर्म की वजह से पैदा होने वाले विद्युत प्रवाह से बनते हैं। यहां पर अधिक प्रवाह जब बादलों के ऊपर आयनोस्फेयर में जाता है, तब ऐसी रोशनी देखने को मिलती है। यानी जमीन से करीब 80 किलोमीटर ऊपर।
आमतौर पर ये जेलीफिश या गाजर के आकार में दिखाई देती हैं। इनकी औसत लंबाई-चौड़ाई 48 किलोमीटर तक रहती है। कम या ज्यादा वो तीव्रता पर निर्भर करता है। धरती से इन्हें देखना आसान नहीं होता। ये आपको ऊंचाई पर उड़ रहे प्लेन, अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन से स्पष्ट दिख सकते हैं। आमतौर पर स्पेस स्टेशन पर रह रहे अंतरिक्षयात्रियों को ये नजारा अक्सर दिख जाता है। स्प्राइट्स सिर्फ थंडरस्टॉर्म से ही नहीं पैदा होते। ये ट्रांजिएंट ल्यूमिनस इवेंट्स (टीएलईज) की वजह से भी बनते हैं। जिन्हें ब्लू जेट्स कहते हैं। ये अंतरिक्ष से नीचे की तरफ आती नीले रंग की रोशनी होती है, जिसके ऊपर तश्तरी जैसी आकृति बनती है।
जरूरी नहीं है कि धरती के वायुमंडल की वजह से सिर्फ यहीं लाल रंग की कड़कती बिजली दिखाई दे। ये वायुमंडल रखने वाले सभी ग्रहों और तारों में भी देखने को मिल सकती है। बृहस्पति ग्रह के वायुमंडल में ऐसे ही स्प्राइट्स की तस्वीर नासा के वॉयेजर-1 स्पेसक्राफ्ट ने साल 1979 में ली थी। ये ब्लू जेट्स थे।  सबसे पहले 1950 में स्प्राइट्स को कुछ नागरिक विमानों ने देखा था। इसके बाद इन्हें लेकर कई थ्योरीज दी गईं। पहली फोटो साल 1989 में आई थी। यह फोटो एक एक्सीडेंटल फोटो थी। मिनिसोटा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता एक कम रोशनी वाले कैमरा की जांच कर रहे थे, तब उन्होंने बादलों के ऊपर इसकी रोशनी की तस्वीर गलती से ले ली थी। इसके बाद स्पेस स्टेशन से कई एस्ट्रोनॉट्स ने इन रोशनियों के वीडियो बनाए।