भोपाल । इस बार भोपाल गेहूं खरीदी के टारगेट से पीछे रह गया। करीब 22 प्रदेशत गेहूं की कम खरीदी हुई है। टारगेट 30 लाख क्विंटल था, जबकि सरकार 23.46 लाख क्विंटल ही खरीद पाई। हालांकि, पड़ौसी जिले विदिशा और सीहोर में बंपर खरीदी की गई। यही वजह है कि गेहूं खरीदी के मामले में भोपाल संभाग प्रदेशभर में अव्वल रहा।प्रदेश में गेहूं खरीदी करीब दो महीने चली। कम खरीदी होने से सरकार ने 15 दिन के लिए डेट भी आगे बढ़ाई। बावजूद प्रदेश के कुछ जिलों में टारगेट के मुताबिक गेहूं नहीं खरीदा जा सका। भोपाल, राजगढ़ समेत कई जिले इनमें शामिल हैं। गौरतलब है कि यूक्रेन-रूस विवाद के बाद खुले बाजार में गेहूं की डिमांड बढ़ गई। बड़ी एक्सपोर्टर कंपनियां मंडियों से सीधे गेहूं खरीदने लगी। इस कारण अच्छी क्वॉलिटी के गेहूं के भाव 2500 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गए। ऐसे में किसानों का रुझान सरकार को गेहूं बेचने में कम रहा।
सरकारी खरीदी बंद होने के बाद जिन किसानों ने गेहूं सहेजकर रखा है, वे मंडियों में बेचने जाएंगे। ऐसे में मंडी में आवक बढ़ सकती है। हालांकि, अधिकांश किसान अपना गेहूं पहले ही बेच चुके हैं।
प्रदेश में गेहूं की खरीदी कम होने से सरकार को फायदा मिला। मप्र सरकार को आरबीआई से गेहूं खरीद के लिए 25 हजार करोड़ रुपए की कैश क्रेडिट लिमिट मिली थी। खरीद कम होने से सरकार को 8.8 हजार करोड़ रुपए का ही कर्ज लेना पड़ा। इससे सरकार पर सालाना 1215 करोड़ रुपए का ब्याज का भार नहीं आएगा। पिछले साल से 64 प्रतिशत खरीद कम होने से खाद्य विभाग को हर माह 75 करोड़ रुपए का किराया प्राइवेट वेयरहाउस को नहीं देना पड़ेगा। सालाना यह बचत 750 करोड़ की होगी। इसे मिलाकर कुल बचत 1,965 करोड़ रुपए होने का अनुमान है।